लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया
बोली-अगर मान
लें कि आपकी
सारी शंकाएँ पूरी
हो जाएँ, आपका
सम्मान मिट जाए,
सारा शहर आपका
दुश्मन हो जाए,
हुक्काम आपको संदेह
की दृष्टि से
देखने लगें, यहाँ
तक कि आपके
इलाके के जब्त
होने की नौबत
भी आ जाए,
तब भी मैं
आपसे यही कहती
जाऊँगी, अपने स्थान
पर अटल रहिए।
यही हमारा क्षात्रा
धार्म है। आज
ही यह बात
समाचार-पत्राों में प्रकाशित
हो जाएगी और
सारी दुनिया नहीं,
तो कम-से-कम समस्त
भारत आपकी ओर
उत्सुक नेत्राों से देखेगा
कि आप जातीय
गौरव की कितने
धौर्य, साहस और
त्याग के साथ
रक्षा करते हैं।
इस संग्राम में
हमारी हार भी
महान् विजय का
स्थान पाएगी; क्योंकि
वह पशु-बल
की नहीं, आत्मबल
की लड़ाई है।
लेकिन मुझे तो
पूर्ण विश्वास है
कि आपकी शंकाएँ
निर्मूल सिध्द होंगी। एक
कर्मचारी के अन्याय
की फरियाद सरकार
के कानों में
पहुँचाकर आप उस
सुदृढ़ राजभक्ति का परिचय
देंगे, सरकार की उस
न्याय-रीति पर
पूर्ण विश्वास की
घोषणा करेंगे, जो
साम्राज्य का आधाार
है। बालक माता
के सामने रोये,
हठ करे, मचले;
पर माता की
ममता क्षण-मात्रा
भी कम नहीं
होती। मुझे तो
निश्चय है कि
सरकार अपने न्याय
की धााक जमाने
के लिए आपका
और भी सम्मान
करेगी। जातीय आंदोलन के
नेता प्राय: उच्च
कोटि की उपाधिायों
से विभूषित किए
जाते हैं, और,
कोई कारण नहीं
कि आपको भी
वही सम्मान न
प्राप्त हो।
यह युक्ति राजा साहब
को विचारणीय जान
पड़ी। बोले-अच्छा,
सोचूँगा। इतना कहकर
चले गए।
दूसरे दिन सुबह
जॉन सेवक राजा
साहब से मिलने
आए। उन्होंने भी
यही सलाह दी
कि इस मुआमले
में जरा भी
न दबना चाहिए।
लड़ूँगा तो मैं,
आप केवल मेरी
पीठ ठोकते जाइएगा।
राजा साहब को
कुछ ढाढ़स हुआ,
एक से दो
हुए। संधया समय
वह कुँवर साहब
से सलाह लेने
गए। उनकी भी
यही राय हुई।
डॉक्टर गांगुली तार द्वारा
बुलाए गए। उन्होंने
यहाँ तक जोर
दिया कि 'आप
चुप भी हो
जाएँगे, तो मैं
व्यवस्थापक सभा में
इस विषय को
अवश्य उपस्थित करूँगा।
सरकार हमारे वाणिज्य-व्यवसाय की ओर
इतनी उदासीन नहीं
रह सकती। यह
न्याय-अन्याय या
मानापमान का प्रश्न
नहीं है, केवल
व्यावसायिक प्रतिस्पधर्ाा का प्रश्न
है।'
राजा साहब इंदु
से बोले-लो
भाई, तुम्हारी ही
सलाह पक्की रही।
जान पर खेल
रहा हूँ।
इंदु ने उन्हें
श्रध्दा की दृष्टि
से देखकर कहा-ईश्वर ने चाहा
तो आपकी विजय
ही होगी।